Antwort
|
"Wann
|
treffen
|
wir
|
drei
|
wieder
|
zusamm'?"
|
Um
|
die
|
siebente
|
Stund',
|
am
|
Brückendamm."
|
"Am
|
Mittelpfeiler."
|
"Ich
|
lösche
|
die
|
Flamm'."
|
"Ich
|
mit."
|
"Ich
|
komme
|
vom
|
Norden
|
her."
|
"Und
|
ich
|
von
|
Süden."
|
"Und
|
ich
|
vom
|
Meer."
|
"Hei,
|
das
|
gibt
|
ein
|
Ringelreihn,
|
Und
|
die
|
Brücke
|
muß
|
in
|
den
|
Grund
|
hinein."
|
"Und
|
der
|
Zug,
|
der
|
in
|
die
|
Brücke
|
tritt
|
Um
|
die
|
siebente
|
Stund'?"
|
"Ei
|
der
|
muß
|
mit."
|
"Muß
|
|
Antwort
|
mit."
|
"Tand,
|
Tand,
|
Ist
|
das
|
Gebilde
|
von
|
Menschenhand."
|
Auf
|
der
|
Norderseite,
|
das
|
Brückenhaus -
|
alle
|
Fenster
|
sehen
|
nach
|
Süden
|
aus,
|
Und
|
die
|
Brücknersleut',
|
ohne
|
Rast
|
und
|
Ruh
|
Und
|
in
|
Bangen
|
sehen
|
nach
|
Süden
|
zu,
|
Sehen
|
und
|
warten,
|
ob
|
nicht
|
ein
|
Licht
|
Übers
|
Wasser
|
hin
|
"ich
|
komme"
|
spricht,
|
"Ich
|
komme,
|
trotz
|
Nacht
|
und
|
Sturmesflug,
|
Ich,
|
der
|
Edinburger
|
Zug."
|
Und
|
der
|
Brückner
|
jetzt:
|
"Ich
|
seh
|
einen
|
|
Antwort
|
Schein
|
Am
|
anderen
|
Ufer.
|
Das
|
muß
|
er
|
sein.
|
Nun
|
Mutter,
|
weg
|
mit
|
dem
|
bangen
|
Traum,
|
Unser
|
Johnie
|
kommt
|
und
|
will
|
seinen
|
Baum,
|
Und
|
was
|
noch
|
am
|
Baume
|
von
|
Lichtern
|
ist,
|
Zünd'
|
alles
|
an
|
wie
|
zum
|
heiligen
|
Christ,
|
Der
|
will
|
heuer
|
zweimal
|
mit
|
uns
|
sein, -
|
Und
|
in
|
elf
|
Minuten
|
ist
|
er
|
herein."
|
Und
|
es
|
war
|
der
|
Zug.
|
Am
|
Süderturm
|
Keucht
|
er
|
vorbei
|
jetzt
|
gegen
|
|
Antwort
|
den
|
Sturm,
|
Und
|
Johnie
|
spricht:
|
"Die
|
Brücke
|
noch!
|
Aber
|
was
|
tut
|
es,
|
wir
|
zwingen
|
es
|
doch.
|
Ein
|
fester
|
Kessel,
|
ein
|
doppelter
|
Dampf,
|
Die
|
bleiben
|
Sieger
|
in
|
solchem
|
Kampf,
|
Und
|
wie's
|
auch
|
rast
|
und
|
ringt
|
und
|
rennt,
|
Wir
|
kriegen
|
es
|
unter:
|
Das
|
Element."
|
"Und
|
unser
|
Stolz
|
ist
|
unsre
|
Brück';
|
Ich
|
lache,
|
denk
|
ich
|
an
|
früher
|
zurück,
|
An
|
all
|
den
|
Jammer
|
und
|
all
|
die
|
Not
|
|
Antwort
|
Mit
|
dem
|
elend
|
alten
|
Schifferboot;
|
Wie
|
manche
|
liebe
|
Christfestnacht
|
Hab
|
ich
|
im
|
Fährhaus
|
zugebracht,
|
Und
|
sah
|
unsrer
|
Fenster
|
lichten
|
Schein,
|
Und
|
zählte,
|
und
|
konnte
|
nicht
|
drüben
|
sein."
|
Auf
|
der
|
Norderseite,
|
das
|
Brückenhaus -
|
Alle
|
Fenster
|
sehen
|
nach
|
Süden
|
aus,
|
Und
|
die
|
Brücknersleut'
|
ohne
|
Rast
|
und
|
Ruh
|
Und
|
in
|
Bangen
|
sehen
|
nach
|
Süden
|
zu;
|
Denn
|
wütender
|
wurde
|
der
|
Winde
|
Spiel,
|
Und
|
jetzt,
|
als
|
ob
|
Feuer
|
|
Antwort
|
vom
|
Himmel
|
fiel',
|
es
|
in
|
niederschießender
|
Pracht
|
Überm
|
Wasser
|
unten...
|
Und
|
wieder
|
ist
|
Nacht.
|
"Wann
|
treffen
|
wir
|
drei
|
wieder
|
zusamm'?"
|
"Um
|
MItternacht,
|
am
|
Bergeskamm."
|
"Auf
|
dem
|
hohen
|
Moor,
|
am
|
Erlenstamm."
|
"Ich
|
komme."
|
"Ich
|
mit."
|
"Ich
|
nenn
|
euch
|
die
|
Zahl."
|
"Und
|
ich
|
die
|
Namen."
|
"Und
|
ich
|
die
|
Qual."
|
"Hei!
|
Wie
|
Splitter
|
brach
|
das
|
Gebälk
|
entzwei."
|
"Tand,
|
Tand,
|
Ist
|
das
|
Gebilde
|
von
|
Menschenhand."
|
|